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आखिर ब्राह्मण वर्तमान काल में क्या करें क्या न करें

1. ब्राह्मण को तिलक, शिखा, यज्ञोपवीत, गायत्राी जप, सन्धया का त्याग नहीं करना चाहिए इसीसे ब्राह्मण की मान्यता होती है, ब्राह्मण का परिचय होता है तथा ब्रह्मतेज जागृत होता है।

2. ब्राह्मण मृतक भोजन में भाग नहीं ले इससे ब्रह्मतेज घटता है वेद वाक्य है- ‘अन्नं विप्रान् जिघांसति’ यद्यपि यजमानों की धरणा है कि ब्रह्मभोज से मृतक की मुक्ति होती है। ब्राह्मणों को समझना चाहिए कि जनता भी जनार्दन का रूप
है। आप गरीबों, अपंगों, बीमारों को ‘जनार्दनभोज’ दीजिए ईश्वर प्रसन्न होगा जिससे श्राद्ध में आघात नहीं हो।

3. ब्राह्मणों को वरविक्रय दहेज प्रथा बन्द करनी चाहिए कन्यादाता अपनी कन्या को जितना चाहे यथाशक्ती दे सकता है। दहेज न मिलने पर गृहलक्ष्मी की प्रताड़ना बिलकुल नहीं करें। ‘यत्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्रा देवताः’ यह ब्रह्मवाक्य है।

4. भ्रूण हत्या का समर्थन नहीं करें उसका डटकर विरोध करें।

5. सभी ब्राह्मण वर्ग भेद त्यागकर परस्पर सम्बन्ध स्थापित करें।

6. सभी ब्राह्मण उच्च हैं उनमें छोटे बड़े का भेदभाव नहीं अपनाएं क्योंकि मात्रा स्थान देश भेद से ही भेद उत्पन्न हो गया है।

7. नगर से लेकर गाँव तक के ब्राह्मणों को संगठित करें उनके सुख दुःख में संवेदना तथा सहायता करें।

8. बच्चों में ब्राह्मणत्व के संस्कार डालंे तथा यथा समय संस्कार भी करावें। उन्हें ब्राह्मणों का इतिहास बतलाते रहें।

9. बालिकाओं को भी उच्च शिक्षा प्राप्त करावें। ब्राह्मण कन्याओं को चाहिए कि वह शालीनता, तथा चरित्रा की रक्षा करें। मर्यादा पालन से साहस की वृद्धि होती है।

10. घर में एक दिन (अवकाश के दिन) पूरा परिवार एक साथ भोजन में बैठे तथा एक दूसरे के कार्यों की समीक्षा करें।

11. कोई काम अपवित्रा नहीं होता जो काम मिले उसे करने में हिचक नहीं हो उद्योगी बनें।

12. ब्राह्मणेतर जाति के सज्जनों को अपनी सभाओं में श्रोता के रूप में आमंत्रित करें।

13. महीना के प्रथम या अन्तिम रविवार को अग्निहोत्रा अवश्य करें जाति भेद त्यागकर सभी को आमंत्रित करें।

14. ब्राह्मण युवक अपनी इतनी योग्यता प्राप्त करें कि उच्च पदवी की प्रतिस्पर्धा जीत सकें।

15. ब्राह्मण बालक चिकित्सा, इंजीनियरिंग, तकनीकी टेªनिंग कोर्स अन्य ज्ञान अवश्य प्राप्त करें नौकरी न मिलने पर अपनी स्वतंत्रा व्यवसाय चला सकें।

16. सभी ब्राह्मणों को थोड़ी बहुत व्यवहारिक संस्कृत का ज्ञान आवश्य करना चाहिए ताकि शास्त्रों के उच्चारण में सुगमता हो।

17. ब्राह्मणों को मादक व्यसनों का त्याग करना चाहिए अन्नपूर्णा देवी या इष्टदेव को भोग लगाकर सात्विक भोजन करें ताकि बुद्धि तीव्र रहे।

18. यदि अधिक न कर सकें बहुत व्यस्तता है तो तिलक अवश्य लगावें और गायत्राी पाठ नियमित करें।19. अर्चक तथा पंडित पुरोहित प्रत्येक पर्व तथा संस्कार एवं पूजा पाठ का सामाजिक तथा वैज्ञानिक अर्थ समझाएं तथा प्रवचनों में केवल कथा मात्रा नहीं अपितु उससे निकलने वाला व्यवहारिक भाव भी समझाना चाहिए। प्रवचनों में केवल भक्तियोग का ही वर्णन न करें। पारिवारिक सुख शांति, सफलता, आदि के लिए भी उपदेश दें ताकि नवयुवक धर्म की ओर आकृष्ट हो सकें।

20. कर्मकाण्डी तथा ज्योतिषी आपस में मिल बैठकर विवाह आदि विधन पर चर्चा करें। ग्रहदोष आदि के कारण अनेक अच्छे विवाह नहीं हो पाते इसलिए अब लोग बिना जन्मपत्राी आदि विचार किए विवाह करते हैं। इसलिए मेलापक में नाड़ी, मंगली, गोत्रा मात्रा देखें तथा 18 गुण से ऊपर गुण मिलते हों मेलापक बना देना चाहिए ताकि ज्योतिष में श्रद्धा बनी रहे, कर्मकाण्ड विज्ञान में आस्था जागृत रहे। ज्यादा एक-एक ग्रह का फल विवाह में नहीं देखें क्रूर ग्रहों को भी तो 12 भाव में ही रहना है जहाँ रहें या दृष्टि होगी उसके लिए फल लिखे हैं उस सूक्ष्मता पर नहीं जाएं। ऐसे एक विधन की रचनाकर युगानुसार व्यवस्था अपनाएं।

21. ब्राह्मणों को प्रत्येक ब्राह्मण वर्ग के सम्मेलनों में भाग लेना चाहिए बहुत से ब्राह्मण आलस्य वश नहीं जाते इस प्रमाद को त्याग कर सबसे मेला मिलाप करते रहने के कई लाभ होते हैं।

22. जहाँ भी जिस प्रकार का ब्राह्मण पर संकट पड़े या समर्थन अथवा आंदोलन की आवश्यकता पड़े वहाँ सभी ब्राह्मणों को सहायता करनी चाहिए।

23. ब्राह्मण नेता हो, अधिकारी हो, उद्योगी हो जहाँ भी सरकारी गैर सरकारी पदों पर आसीन हो निर्भय होकर प्रत्यक्ष या परोक्ष में ब्राह्मण की सहायता करनी चाहिए ऐसा न करना एक जघन्य पाप है। सबको ब्राह्मणों की उन्नति में
सहयोग करना चाहिए।

24. बहुत से ब्राह्मण अपने सम्मेलनों में नारियों को नहीं ले जाते यह ब्राह्मणत्व के प्रचार में भारी अवरोध है। सपरिवार भाग लेना चाहिए।

25. ब्राह्मण गाँव में आपस में धनसंग्रह कर परशुरामभवन का निर्माण करें।

– इति ब्राह्मण आचार संहिता