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यद्यपि अपरिग्रह की भावना, अयाचकता, साधनसंग्रह नहीं करना भारत को सही माने में माता मानना, यह कभी सद्गुण थे परन्तु कलियुग में यह अवगुण माने जाते हैं। आज के गुण हैं हेराफेरी, चाटुकारिता, मिथ्या आश्वासन, जो ब्राह्मण कर ही नहीं सकता वह स्वामिमानी होता है। इसी से वह गरीब होता रहा। वह भूख प्यास असुविधपूर्ण जीवन सहन कर सकता है। परन्तु धन के लिए असत्यवादी भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता। आजकल के नेता चारों तरपफ से धन बटोरने में लगे रहते हैं। कुछ ही ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जो भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह से अलग हैं या उन्हें मौका ही नहीं मिलता क्योंकि भ्रष्टाचार का एक ऐसा चक्रवात ;सुनामी जैसाद्ध फैल गया है जिसका सामना करना कठिन है।

ब्राह्मण तो सदा से सरस्वती का उपासक रहा है। वह लक्ष्मी के पीछे कभी नहीं भागा। लक्ष्मी ने ब्राह्मणों को त्याग दिया शाप दिया पर ब्राह्मण हिमालय की तरह अडिग रहा। महर्षि भृगु ने क्षीर सागर में शयन करते नारायण विष्णु को पाद प्रहार कर दिया। नारायण क्योंकि ब्राह्मणों के तप त्याग ब्रह्मतेज से परिचित हैं वह क्रोध न कर ऋषि के पैर को सहलाने लगे कहीं आपको मेरे कठोर वक्षस्थल से चोट तो नहीं लगी। परन्तु लक्ष्मी ने शाप दे दिया कि ब्राह्मण के घर मैं कभी नहीं रहूँगी। परन्तु ब्राह्मण इतना रागद्वेष शून्य है कि यद्यपि लक्ष्मी का शाप सफल तो हुआ परन्तु ब्राह्मणों ने प्रत्येक शुभ कार्यों में लक्ष्मी पूजन कराते रहे। दीपावली पर लक्ष्मी का सम्मान करता रहा परन्तु नारायण का त्याग नहीं किया और न ही लक्ष्मी के पीछे दौड़ा। आखिर लक्ष्मी अब शर्मिन्दा होकर ब्राह्मणों के पास आ रही है। इस विषय में एक कथा मननीय है – एक बार नारद जी महाराज विष्णुलोक गए और प्रार्थना की कि आप इस चतुर्मास में ब्राह्मण बनकर धरती के मेरे भक्तों को उपदेश देकर मोक्ष प्रदान करने चलें।

भक्तवत्सल नारायण ने स्वीकृति दे दी। पास में लक्ष्मी जी भी बैठी थीं उनको प्रणाम भी नहीं किया और वीणा उठाकर श्रीमन्नारायण कहते हुए चल पड़े। लक्ष्मी जी रुष्ट हो गई कि यह तो मेरी अवमानना है। लक्ष्मी ने तेवर चढ़ाते हुए देवर्षि से प्रश्न किया कि आपने मेरा अनादर क्यों किया? नारद बोले हमें तो नारायण से काम है आपसे कोई मतलब नहीं, लक्ष्मी ने नारद को सबक सिखाने की ठान ली। इधर नारायण वेद लेकर ब्राह्मण बनकर धरती पर निर्धरित स्थान एक आवासीय ग्राम में पहुँचे। नारायण को भी ज्ञान था कि लोग ब्राह्मणों से ही कथा श्रवण में श्रद्धा रखते हैं अतः नारायण को भी ब्राह्मण बनना पड़ा। शिखा सूत्रा तिलक लगाकर पहुँचे एक मास की कथा होनी थी। लोगों ने नारद जी से सुना कि स्वयं नाराण ब्राह्मण रूप में कथा सुनाने आए हैं। अन्त में सबको मुक्ति प्रदान करेंगे। अनन्त भीड़ उमड़ पड़ी। उधर लक्ष्मी जी ने देखा कि नारद तो सफल हो रहा है। अतः अपना प्रभाव तथा लोकप्रियता की शक्ति प्रदर्शन करने के लिए एक वृद्धा स्त्राी का रूप धरण कर उसी ग्राम में पहुंच गईं, देखा सारा गाँव सूना पड़ा है। परन्तु एक महिला घर का दरवाजा बन्द कर नारायण के सत्संग में जा रही है। तुरन्त जाकर लक्ष्मी ने कहा कि माताजी, थोड़ा जल पिला दीजिए। माता ने गुस्से में कहा कि मुझे तो वैसे 5 मिनट की देरी हो गई है तू भी वहीं चल मोक्ष वितरण होगा। लक्ष्मी ने दरवाजा का कुंडा स्पर्श किया वह सोने का हो गया। वह महिला तो चकाचौंध हो गई। बस क्या था भूल गई मोक्ष, आईए देवीजी जल क्या भोजन कीजिए आराम कीजिए। लक्ष्मी ने कहा कि मैं तो इस नगर के वासियों को धनी बनाने आई हूँ पर वह नारायण मोक्ष दे रहा है। जब तक वह यहाँ है मैं बाध नहीं पहुँचाना चाहती। उस घर की माता सत्संग में भागी-भागी गई कथा समाप्त हो रही थी। आयोजकों को लक्ष्मी आगमन की सूचना दी। आयोजकों की बैठक हुई कि इस ब्राह्मण को कैसे विदा किया जावे। नारद भी बहुत बड़ा दुश्मन है मोक्ष देने के लिए लोभ देकर हमें मोक्ष दिला रहा है। प्रमुख लोग लक्ष्मी महारानी वृद्धा माता के पास पहुँचे।

महारानी कल आप सत्संग में पधारिए उस मोक्ष देने वाले को भगा दिया जावेगा। लक्ष्मी ने कहा कि आप सभी गाँव-गाँव तक सूचना भेज दें जिसके पास टूटा-फूटा या सही लोहा, पत्थर मिले यहाँ ढेर लगा दे सबको सोना बना दूँगी। शोर मच गया लोग अपना-अपना ढेर लगा दिया। प्रातः काल नारायण जी नारद सहित मंच पर पहुँच गए। सबने प्रार्थना की कि देर नहीं करें कृपया अभी-अभी चले जाइए। नारद समझा रहे हैं कि भाई दो दिन कथा के शेष रह गए हैं, आपको मोक्ष मिलेगा। लोग उठे नारायण का पोथी पत्रा उठाया और नारद तथा नारायण को धक्का दे देकर ग्राम के बाहर निकाल दिया। नारायण समझ गए कि लक्ष्मी अपनी अवमानना का बदला लिया है। बस उसके बाद लक्ष्मी जी मंच पर पधार कर हाथ उठाया सभी कुछ सोना बन गया। लोग हर्ष से नाच कूद रहे थे। लक्ष्मी ने कहा कि देखो मैं जा रही हूं, तुमने नारायण को धक्का दिया यह मेरे पति ( लक्ष्मी पति ) का अपमान है इसका दुष्परिणाम भी भोगो। लक्ष्मी जी के अन्तर्ध्यान होते ही सब कुछ राख का ढेर बन गया।

अतः ध्यान देने योग्य है कि हमारी लक्ष्मी नाायण संस्कृति है जिसे ब्राह्मणों ने नारी पूजा के निमित्त साथ ही लक्ष्मी के साथ नारायण पूजा की आवश्यकता पर बल दिया है। लोग राधकृष्ण, उमाशंकर, सीताराम, कहकर सम्बोध्ति करते हैं। परन्तु अकेले लक्ष्मी (चंचला) के पीछे ब्राह्मण नहीं भागता। जैसा कि आज लक्ष्मी के लिए मारामारी हो रही है। ब्राह्मण ने सर्वदा से विद्या को ही प्रधन धन माना है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों को जीवन में महत्व दिया है। जिससे मानव सभ्यता का अभ्युदय हुआ। आज जितना चरित्रा पतन, मर्यादा हनन हो रहा है जिससे प्रकृति नाराज है, ईश्वर सर्वोच्च सत्ता परेशान है। ऐसे समय में ही ईश्वरीय अवतार होता है। शीघ्र ही ईश्वरीय अवतार कल्कि बनकर अवतरित होने वाला है। बाह्य पर्यावरण आन्तरिक पर्यावरण, धर्म पर आघात तीव्रता पर है। गीता भी कहती है – यदायदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थान मधर्यस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम्।। जब-जब धर्म कर्तव्यबोध तथा सदाचार में ग्लानि होती है अधर्म शिर उठा लेता है मैं अवतरित होता हूँ। सावधन यह अवतार ब्राह्मणावतार है। किए जाओ घपले, भष्टाचार, करते रहो ब्राह्मणों की उपेक्षा, सबका हिसाब किताब लेने वाला आ रहा है। ब्राह्मणों अपने में ब्रह्मतेज जगावो, धर्म युद्ध की तैयारी करो परशुराम तथा हनुमान जी सहित अवतार के स्वागत के लिए आलस्य त्याग सतयुग लाने की तैयारी करो।