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प्रत्येक ब्राह्मण को परशुराम तथा चाणक्य बनना पड़ेगा। हमारे सभी देवी-देवताओं के प्रतीक अस्त्रा शस्त्रा हैं। धर्म, देश, ब्राह्मणत्व की रक्षा के लिए शस्त्रा उठाना अपराध नहीं है। ब्राह्मण अहिंसा का पक्षधर रहा है परन्तु यदि सीमा सुरक्षा के लिए सेना को अहिंसा का पाठ पढ़ाया जावे तो हास्यास्पद होगा उसी प्रकार यदि ब्राह्मण अथवा ब्राह्मणहितैषी आत्मरक्षा के लिए शस्त्रा ग्रहण करता है तो वह रक्षात्मक दृष्टि से हिंसा नहीं अहिंसा ही है। मनु ने आज्ञा दी है-आततायिन मायान्तं हन्यादेवाविचारयन यदि आततायी आ रहा हो तो बिना विचार के मार देना चाहिए।

आज कई जगह से सूचना मिलती है कि ब्राह्मण को सताया जा रहा है। अमुक ब्राह्मण की हत्या कर दी गई है। सभी जानते भी हैं प्रत्यक्ष प्रमाण भी हैं परन्तु अरोपी पर कुछ कार्यवाही नहीं की जाती। ऐसे अवमानना तथा संकटकाल में ब्राह्मणों को आत्मरक्षा के लिए कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। ब्राह्मण उस विराट् पुरुष का मुख है यदि ब्राह्मण ही मौन हो गया तो मानवता नष्ट हो जावेगी।

 ब्राह्मण, साधु सन्त, मौन तोड़ें धर्म तथा अस्मिता, आस्था की रक्षा करने के लिए आगे बढ़ें। जब श्री परशुराम को पता चला कि सहस्रार्जुन, गौ का अपमान, आश्रमों का ध्वंस, सनातन धर्म का ह्नास, ब्राह्मणों का अपमान कर रहा है। उन्होंने मौन तोड़ा तप छोड़ा मैदान में कूद पड़े तभी धर्मरक्षा, गोरक्षा, आश्रमों की रक्षा कर सके। परन्तु खेद और आश्चर्य की बात है, लगता है ऋषि परम्परा का रक्त ब्राह्मणों की धमनियों में सूख रहा है। प्रयत्न करने पर भी ब्राह्मण में ब्रह्मतेज उत्पन्न नहीं हो रहा। ब्राह्मण अपनी एकता के लिए शंखनाद नहीं कर रहे। अभी ब्राह्मणों के जागरण तथा पुनरुत्थान के लिए उचित समय है – उत्तिष्ठ ब्राह्मण उत्तिष्ठ। ”चरैवेति चरैवेति“ जागो, चल पड़ो, आगे बढ़ो।