वर्णभेद या वर्णव्यवस्था या जातिविभाजन
मनु तथा ब्राह्मण साम्राज्य पर आरोप लगाया जाता है कि मनु ने तथा ब्राह्मण साम्राज्यवाद के समय जातियों का विभाजन (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) हुआ। वोट बैंक के लिए आज जितने विभाजन जातियों के कर दिये गए हैं इतने पहले कभी नहीं हुए वस्तुतः आज वर्णभेद पराकाष्ठा पर पहुँच गया है। ब्राह्मणों ने कभी वर्ण भेद नहीं किया उन्होंने वर्ण व्यवस्था की थी। सभी वेदपाठी, संस्कृतज्ञ, धर्मधरित जीवन व्यतीत करने वाले तो नहीं बन सकते थे।
सभी बुद्धि सम्पन्न भी नहीं हो सकते थे। अतः सबके जीविका संचालन का प्रबन्ध करना था। गुण कर्मों के अनुसार वर्ण वरण करने की स्वतंत्राता दी गई थी। कर्मों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया था। अपने कर्मानुसार जीवन जीने की पूर्ण स्वतंत्राता थी। वर्ण उसे कहते हैं जो जैसा कर्म व्यवसाय तथा कर्तव्य का वरण करे। इसमें मनु क्या करे, ब्राह्मण क्या करे, सबने अपने वर्ण वरण कर लिया। आरोप ब्राह्मणों पर लगा दिया। वर्ण व्यवस्था इतनी व्यापक तथा आदर्श थी कि नाम चाहे जो दें आज सारा विश्व इसी वर्ण व्यवस्था पर चल रहा है। प्रत्येक राष्ट्र के विकास के लिए राष्ट्र की सुव्यवस्था के लिए।
1. बुद्धिबल 2. अर्थबल 3. रक्षाबल 4. सेवाबल की जरूरत पड़ती है। जो शिक्षा उपदेश देते हैं वह ब्राह्मण न कहलाकर बुद्धिवादी, रिसर्च स्कॅालर, अध्यापक कहे जाते हैं। 2. अर्थ बल आर्थिक विकास का द्योतक है वही वैश्य है। देश रक्षा सीमा सुरक्षा के लिए सेना, पुलिस की आवश्यकता है वही रक्षाबल अथवा क्षत्रिय है। सारे कार्यों का सम्पादन कर्मचारियों, अधिकारियों द्वारा होता है वही शूद्र सेवा बल है। क्योंकि भारत का राजवर्ग संस्कृत से अनभिज्ञ है अतः वास्तविक अर्थ समझने में मूर्ख है। अर्थ का अनर्थ करता रहता है। शूद्र शब्द संस्कृत का है जिसका अर्थ स्पष्ट है कि जो शुद्ध होने के बाद सर्वजनसान्य होता है।