धर्मनिरपेक्षवाद एक छल
धर्मनिरपेक्षवाद एक छल
पूजा, पाठ, हवन, जप पर्व तथा नमाज, रोजा, ईद एवं पावन गुरु ग्रन्थ का पाठ वेद, कुरान, गुरु ग्रन्थ साहब यह सब का अनुसरण करने वालों को धर्म के अनुयायी है ऐसा समझा जाता है। इनको साम्प्रदायिक भी माना जाता है जबकि यह उपासनाएंँ हैं, धर्म नहीं। इनके अलग.अलग मानने वालों का समूह सम्प्रदाय कहा जाता है। परन्तु धर्म तो ईश्वर की भाँति सबके लिए एक ही है सनातन धर्म या जिसे मानव धर्म कह सकते हैं धर्म के लक्षण पहले बता चुके हैं वही सार्वभौम सनातन धर्म है ऐसा कौन सा चेतन अचेतन पदार्थ है जिसका कोई धर्म ; गुण द्ध नहीं धर्मसापेक्ष के कारण आँख का गुणधर्म देखना है, कान का सुनना है, औषधियों का रोग निवारण है, ईंट पत्थर तक का भवन निर्माण आदि गुण धर्म है। तो क्या धर्मनिरपेक्ष का अभिप्राय है कि अंध्े, बहरे अपंगए निष्क्रिय हो जाएं। इस अज्ञानता का कारण है जो सत्ता पर बैठे हैं उन्हें धर्म का ज्ञान नहीं क्योंकि ईश्वरीय प्रेरणा से धर्म का प्रचार ब्राह्मणों ने किया अतः उसे मानने में हिचक हो रही है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो धर्म और संस्कृति की परिभाषा भी नहीं जानते वह भी धर्म की पूँछ पकड़ कर राजनीति की वैतरणी पार करना चाहते हैं। इसीलिए मनु ने कहा कि ष्एतद्देशप्रसूतस्य चरित्रांशिक्षेरन्ष् अर्थात् सभी लोग अग्रजन्मा ब्राह्मणों से धर्म और चरित्रा की शिक्षा ग्रहण करें। वस्तुतः धर्म शब्द का दुरुपयोग नहीं कर जाति निरपेक्ष, भ्रष्टाचार निरपेक्ष, पन्थनिरपेक्ष, साम्प्रदायिकता निरपेक्ष इनमें से एक वाक्य का प्रयोग करना चाहिए था। क्योंकि संविधन निर्माण में कोई विद्वान् ब्राह्मण नहीं था
तो संविधन में कुछ अवांछित नियम सम्मिलित हो गए। धर्म ब्राह्मण निर्मित है तथा ब्राह्मण का प्राण रूप है इसीलिए धर्मनिरपेक्ष विशेषण का दुष्प्रयोग किया गया होगा। कहीं भी ब्राह्मणत्व की चिनगारी न रह जाए ऐसे नियम आदेश जारी किए जा रहे हैं।
इतना ही सरकार या नेतागण कर सकते हैं कि ब्राह्मणों को नौकरी नहीं मिले। पर ब्राह्मण विद्या व्यसनी तथा बुिवादी है वह पुजारी, ज्योतिष, पुरोहित, शिक्षक बनकर जीवन यापन कर सकता है। अब जरा धर्म निरपेक्षता का स्वरूप देखिए घर से निकलते ही धर्मनिरपेक्ष बन जाते हैं। घर आते हैं तो धर्मसापेक्ष बन जाते हैं श्राद्ध मृतककर्म संस्कार, पूजा, पाठ, हवन, अनुष्ठान, रामायण पाठ, सब कुछ ब्राह्मणों द्वारा कराते हैं ऐसा सब कुछ कराना ही पड़ता है। प्रायः गृहणी वर्ग आस्तिक तथा धर्मपरायण होती है। उनके भय से सभी धर्म को मानते हैं। धर्मनिरपेक्ष तो वोट पाने का एक नारा है वास्तविकता नहीं फिर भी सत्ता पाने के लिए महामंत्रा है। ऐसा दुविधापूर्ण जीवन जीने से क्या लाभ। ब्राह्मण तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मरण का साथी है उसके बिना लौकिक पारलौकिक शांति मिल ही नहीं सकती। भय केवल इतना है कि यदि ब्राह्मणों की एकता हो गई और अपने लोक प्रभाव से वह सत्ता तक पहुँच गए तो हमारा क्या होगा।