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[mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]Eminent Brahmins in Social Reforms and Bhakti Movements

Many of the prominent thinkers and earliest champions of the Bhakti movement were Brahmins, a movement that encouraged a direct relationship of an individual with a personal god.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]Brahmans outside India and Southeast Asia

Some Brahmins formed an influential group in Burmese Buddhist kingdoms in 18th- and 19th-century. The court Brahmins were locally called Punna.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]Brahmans Not Just Priests but excelled in all trades

Historical records, state scholars, suggest that Brahmin varna was not limited to a particular status or priest and teaching profession. Historical records from mid-1st millennium CE and later, suggest Brahmins were agriculturalists and warriors in medieval India, quite often instead of as exception. Donkin and other scholars state that Hoysala Empire records frequently mention Brahmin merchants “carried on trade in horses, elephants and pearls” and transported goods throughout medieval India before the 14th-century.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]The Enigmatic Queen: Rani Padmini of Indian Lore

Rani Padmini, also known as Padmavati, is a legendary queen associated with the history of Chittorgarh, a historic city in the Indian state of Rajasthan. Her story is primarily told through the epic poem “Padmavat,” written by Malik Muhammad Jayasi in 1540. While the historical accuracy of the events described in the poem is debated, Rani Padmini’s tale has become a symbol of honor, bravery, and sacrifice.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]Sudha Murthy: Philanthropist, Author, and Social Changemaker

Sudha Murthy, an accomplished author, philanthropist, and social worker, stands as a symbol of selfless service and unwavering commitment to the betterment of society. Born on August 19, 1950, in Shiggaon, Karnataka, Sudha Murthy’s life has been a remarkable journey marked by literary contributions, entrepreneurial success, and extensive philanthropic work literature, and philanthropy, is a remarkable figure whose impact extends far beyond the realms of corporate success.  Sudha Murthy’s journey is a narrative of resilience, empathy, and dedicated service to society.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]  Rukmini Devi Arundale: Architect of India’s Cultural Renaissance  A Trailblazer in Dance & Education  

Rukmini Devi Arundale, born on February 29, 1904, in Madurai, India, Rukmini Devi Arundale, a beacon of grace, artistry, and cultural resurgence, played a pivotal role in revitalizing traditional, was a visionary and a pioneer in the realms of Indian classical dance, education, and cultural revival. Her life’s journey is an inspiring saga of breaking societal norms, redefining art, and contributing significantly to the preservation and promotion of India’s rich cultural heritage.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]Kamaladevi Chattopadhyay: A Renaissance Woman and Cultural Visionary

 

Kamaladevi Chattopadhyay, a name synonymous with multifaceted brilliance, stands as a pioneering force in India’s socio-cultural landscape. Born on April 3, 1903, in Mangalore, Kamaladevi emerged as a relentless advocate for women’s rights, a trailblazer in the realm of Indian independence, and a visionary cultural icon.

Kamaladevi Chattopadhyay was born into a progressive Saraswat Brahmin family. Early on, she demonstrated a thirst for knowledge and a spirit of independence. Despite societal norms of the time, she pursued education, and her early exposure to various cultures laid the foundation for her future endeavors.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]*Rani Lakshmi Bai: The Warrior Queen of Jhansi*

 

Rani Lakshmi Bai, also known as the “Warrior Queen of Jhansi,” was a remarkable figure in India’s history, known for her indomitable spirit, courage, and dedication to the cause of India’s independence during the 19th century. Her life story is a testament to the resilience and determination of women who played a crucial role in the struggle against British colonial rule.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]ब्राह्मणों का तप तथा त्याग

ब्रह्मऋषियों ने सर्वजनहिताय लौकिक सुख साधनों का त्याग कर नदी तटों पर आश्रम बनाकर जीवन व्यतीत किया तथा निरन्तर धर्म तथा संस्कृति के अनेक ग्रन्थों की रचना की। आर्यभट्ट तथा वराहमीहिर जैसे आचार्यों ने अन्तरिक्ष विद्या तथा धरती पर ग्रहों का प्रभाव ज्योतिष शास्त्रों का, भरद्वाज, पुनर्वसु अग्नेत्र, अग्निवेश, चरक, सुश्रुत वाणभट्ट, नागार्जुन जैसे जीव विज्ञान के अनुसन्धायकों ने आयुर्वेद योग, प्राकृतिक चिकित्सा का, पाणीनि कात्यायन पतंजलि ने संस्कृत व्याकरण, वरुरुचि ने अर्थशास्त्र, चाणक्य ने राजनीति, वेदव्यास ने सृष्टि का इतिहास, विश्वामित्र ने आयुध निर्माण, रसायन शास्त्र, वीर हनुमान ने वैमानिकी विद्या, तन्त्र विज्ञान का, चरक ने काय चिकित्सा तथा सुश्रुत ने शल्य विद्या का, वाग्भट्ट ने स्वस्थ जीवनचर्या का, महर्षि मनु ने पारिवारिक सम्बन्ध तथा राजा प्रजा के कर्तव्यों का, महर्षि कणाद ने विज्ञान तथा परमाणु विद्या का, महर्षि गौतम ने न्याय शास्त्र का, अनेकों ऋषियों ने दर्शन शास्त्रों का कालिदास, वाणभट्ट, भवभूति, भारवि आदि ने साहित्य तथा काव्य का अविष्कार किया।

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]धर्मनिरपेक्षवाद एक छल

पूजा, पाठ, हवन, जप पर्व तथा नमाज, रोजा, ईद एवं पावन गुरु ग्रन्थ का पाठ वेद, कुरान, गुरु ग्रन्थ साहब यह सब का अनुसरण करने वालों को धर्म के अनुयायी है ऐसा समझा जाता है। इनको साम्प्रदायिक भी माना जाता है जबकि यह उपासनाएंँ हैं, धर्म नहीं। इनके अलग-अलग मानने वालों का समूह सम्प्रदाय कहा जाता है। परन्तु धर्म तो ईश्वर की भाँति सबके लिए एक ही है सनातन धर्म या जिसे मानव धर्म कह सकते हैं धर्म के लक्षण पहले बता चुके हैं वही सार्वभौम सनातन धर्म है ऐसा कौन सा  चेतन अचेतन पदार्थ है जिसका कोई धर्म ( गुण ) नहीं धर्मसापेक्ष के कारण आँख का गुणधर्म देखना है, कान का सुनना है, औषधियों का रोग निवारण है, ईंट पत्थर तक का भवन निर्माण आदि गुण धर्म है। तो क्या धर्मनिरपेक्ष का अभिप्राय है कि अंधे, बहरे अपंग, निष्क्रिय हो जाएं।

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]मनुवाद की आलोचना

मायावादी तथा विलासवादी नेता मनुवाद की आलोचना करते रहते हैं पहले तो ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ इस मंगलाचरण से सभा प्रारम्भ होती थी। जब देखा ब्राह्मणों के बिना विजय मिलनी कठिन है तो महामंत्रा की पूर्णाहुति कर ब्राह्मणों का आश्रय लिया और सफलता भी मिली। परन्तु ब्राह्मणों को कुछ पद तथा जीविका साधन तो मिले, मान्यता नहीं। अब मंगलाचरण में नेता के चरण स्पर्श
जरूरी है। इससे ब्राह्मणों के स्वाभिमान को धक्का लगा है परन्तु कलियुग है कुछ ऐसा करना ही पड़ता है। जिस मनु से मानव, मनुष्य, मानवता बनी उसकी आलोचना बेमानी है। वस्तुतः सर्वप्रथम मनुस्मृति का मुद्रण अंग्रेजों ने कराया कि भारत का पुराना संविधन कैसा है अगर उसमें हेर फेर कर दिया जाए तो जाति विभाजन हो सकता है, स्पृश्य अस्पृश्य की दुर्भावना हो सकती है। अंग्रेजों ने ही मुद्रण कराया और
मनमानी द्वेषपूर्ण अंश संस्कृत श्लोकों में भर दिया।
Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]जन्मब्राह्मण कर्मब्राह्मण

यदि ब्राह्मण में जन्म और कर्म का समन्वय हो जाए तो उत्तम ब्राह्मण है इसमें कोई दो मत नहीं शास्त्रा भी सम्मत है। यदि वह अपनी पहचान बनाए रखते हुए अन्य कोई व्यवसाय करता है तो भी वह श्रेष्ठ ब्राह्मण है। परन्तु यह तो निर्विवाद है कि ब्राह्मण कुल जन्मा ब्राह्मण गोत्र परम्परा के आधार पर वह ब्राह्मण ही रहेगा ब्राह्मणेतर नहीं माना जा सकता है। जो यह कहते हैं कि जिनमें ब्राह्मणों के कर्म नहीं हो वह ब्राह्मण कैसे हो सकते हैं। वह पक्षपात कर रहे हैं। ब्राह्मणों के अन्दर अब भी ऋषियों का रक्तसंचार है। वह खून, रजवीर्य संयोग आज भी है इसलिए सब कोई जन्मजात ब्राह्मण नहीं हो सकता। रही कर्म ब्राह्मणों की बात वह सही है यदि किसी में ब्राह्मण के गुण तथा कर्म मिलते हैं वह भी ब्राह्मण श्रेणी में समाविष्ट हो सकते हैं पर वह कर्म ब्राह्मण या विप्र कहे जा सकते हैं क्योंकि विप्र का अर्थ होता है बुद्धिवादी और निष्णात। ऐसे लोग जो गायत्री, वेद, सनातन धर्म में आस्था रखते हैं वह सभी विप्र कहलाने योग्य हैं। कई शास्त्रों के प्रमाण मौजूद हैं। यह हम पहले ही से कह रहे हैं कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं एक दर्शन, सभ्यता, संस्कृति का नाम है। इसलिए सब के समावेश के लिए द्वार खुले हैं। ‘एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति’।
Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]ब्राह्मण जागृति आवश्यक

प्रत्येक ब्राह्मण को परशुराम तथा चाणक्य बनना पड़ेगा। हमारे सभी देवी-देवताओं के प्रतीक अस्त्रा शस्त्रा हैं। धर्म, देश, ब्राह्मणत्व की रक्षा के लिए शस्त्रा उठाना अपराध नहीं है। ब्राह्मण अहिंसा का पक्षधर रहा है परन्तु यदि सीमा सुरक्षा के लिए सेना को अहिंसा का पाठ पढ़ाया जावे तो हास्यास्पद होगा उसी प्रकार यदि ब्राह्मण अथवा ब्राह्मणहितैषी आत्मरक्षा के लिए शस्त्रा ग्रहण करता है तो वह रक्षात्मक दृष्टि से हिंसा नहीं अहिंसा ही है। मनु ने आज्ञा दी है-आततायिन मायान्तं हन्यादेवाविचारयन यदि आततायी आ रहा हो तो बिना विचार के मार देना चाहिए।
आज कई जगह से सूचना मिलती है कि ब्राह्मण को सताया जा रहा है। अमुक ब्राह्मण की हत्या कर दी गई है। सभी जानते भी हैं प्रत्यक्ष प्रमाण भी हैं परन्तु अरोपी पर कुछ कार्यवाही नहीं की जाती। ऐसे अवमानना तथा संकटकाल में ब्राह्मणों को आत्मरक्षा के लिए कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा। ब्राह्मण उस विराट् पुरुष का मुख है यदि ब्राह्मण ही मौन हो गया तो मानवता नष्ट हो जावेगी।

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]आखिर ब्राह्मण वर्तमान काल में क्या करें क्या न करें

1. ब्राह्मण को तिलक, शिखा, यज्ञोपवीत, गायत्राी जप, सन्धया का त्याग नहीं करना चाहिए इसीसे ब्राह्मण की मान्यता होती है, ब्राह्मण का परिचय होता है तथा ब्रह्मतेज जागृत होता है।

2. ब्राह्मण मृतक भोजन में भाग नहीं ले इससे ब्रह्मतेज घटता है वेद वाक्य है- ‘अन्नं विप्रान् जिघांसति’ यद्यपि यजमानों की धरणा है कि ब्रह्मभोज से मृतक की मुक्ति होती है। ब्राह्मणों को समझना चाहिए कि जनता भी जनार्दन का रूप
है। आप गरीबों, अपंगों, बीमारों को ‘जनार्दनभोज’ दीजिए ईश्वर प्रसन्न होगा जिससे श्राद्ध में आघात नहीं हो।

3. ब्राह्मणों को वरविक्रय दहेज प्रथा बन्द करनी चाहिए कन्यादाता अपनी कन्या को जितना चाहे यथाशक्ती दे सकता है। दहेज न मिलने पर गृहलक्ष्मी की प्रताड़ना बिलकुल नहीं करें। ‘यत्रा नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्रा देवताः’ यह ब्रह्मवाक्य है।

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]Dos and Don’t for the Brahmins according to DharmaShastras

The Gautama Dharmasutra states in verse 10.3 that it is obligatory on a Brahmin to learn and teach the Vedas. Chapter 10 of the text, according to Olivelle translation, states that he may impart Vedic instructions

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none”]Expectations, Roles and Duties of Brahman

The Dharmasutras and Dharmasatras text of Hinduism describe the expectations, duties and role of Brahmins. The rules and duties in these Dharma texts of Hinduism, are primarily directed at Brahmins. The Gautama’s Dharmasutra.

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none” animation=”fade-in”]वर्णभेद या वर्णव्यवस्था या जातिविभाजन

मनु तथा ब्राह्मण साम्राज्य पर आरोप लगाया जाता है कि मनु ने तथा ब्राह्मण साम्राज्यवाद के समय जातियों का विभाजन (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) हुआ। वोट बैंक के लिए आज जितने विभाजन जातियों के कर दिये गए हैं इतने पहले कभी नहीं हुए वस्तुतः आज वर्णभेद पराकाष्ठा पर पहुँच गया है। ब्राह्मणों ने कभी वर्ण भेद नहीं किया उन्होंने वर्ण व्यवस्था की थी। सभी वेदपाठी, संस्कृतज्ञ, धर्मधरित जीवन व्यतीत करने वाले तो नहीं बन सकते थे। सभी बुद्धि सम्पन्न भी नहीं हो सकते थे।

Read More[/mk_blockquote][mk_blockquote font_family=”none”]ब्राह्मण कभी धन पशु नहीं रहा

यद्यपि अपरिग्रह की भावना, अयाचकता, साधनसंग्रह नहीं करना भारत को सही माने में माता मानना, यह कभी सद्गुण थे परन्तु कलियुग में यह अवगुण माने जाते हैं। आज के गुण हैं हेराफेरी, चाटुकारिता, मिथ्या आश्वासन, जो ब्राह्मण कर ही नहीं सकता वह स्वामिमानी होता है। इसी से वह गरीब होता रहा। वह भूख प्यास असुविधपूर्ण जीवन सहन कर सकता है। परन्तु धन के लिए असत्यवादी भ्रष्टाचारी नहीं हो सकता।

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