यदि ब्राह्मण में जन्म और कर्म का समन्वय हो जाए तो उत्तम ब्राह्मण है इसमें कोई दो मत नहीं शास्त्रा भी सम्मत है। यदि वह अपनी पहचान बनाए रखते हुए अन्य कोई व्यवसाय करता है तो भी वह श्रेष्ठ ब्राह्मण है। परन्तु यह तो निर्विवाद है कि ब्राह्मण कुल जन्मा ब्राह्मण गोत्र परम्परा के आधार पर वह ब्राह्मण ही रहेगा ब्राह्मणेतर नहीं माना जा सकता है। जो यह कहते हैं कि जिनमें ब्राह्मणों के कर्म नहीं हो वह ब्राह्मण कैसे हो सकते हैं। वह पक्षपात कर रहे हैं।
ब्राह्मणों के अन्दर अब भी ऋषियों का रक्तसंचार है। वह खून, रजवीर्य संयोग आज भी है इसलिए सब कोई जन्मजात ब्राह्मण नहीं हो सकता। रही कर्म ब्राह्मणों की बात वह सही है यदि किसी में ब्राह्मण के गुण तथा कर्म मिलते हैं वह भी ब्राह्मण श्रेणी में समाविष्ट हो सकते हैं पर वह कर्म ब्राह्मण या विप्र कहे जा सकते हैं क्योंकि विप्र का अर्थ होता है बुद्धिवादी और निष्णात।
ऐसे लोग जो गायत्री, वेद, सनातन धर्म में आस्था रखते हैं वह सभी विप्र कहलाने योग्य हैं। कई शास्त्रों के प्रमाण मौजूद हैं। यह हम पहले ही से कह रहे हैं कि ब्राह्मण कोई जाति नहीं एक दर्शन, सभ्यता, संस्कृति का नाम है। इसलिए सब के समावेश के लिए द्वार खुले हैं। ‘एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति’।