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ब्राह्मणों का तप तथा त्याग
ब्रह्मऋषियों ने सर्वजनहिताय लौकिक सुख साधनों का त्याग कर नदी तटों पर आश्रम बनाकर जीवन व्यतीत किया तथा निरन्तर धर्म तथा संस्कृति के अनेक ग्रन्थों की रचना की। आर्यभट्ट तथा वराहमीहिर जैसे आचार्यों ने अन्तरिक्ष विद्या तथा धरती पर ग्रहों का प्रभाव ज्योतिष शास्त्रों का, भरद्वाज, पुनर्वसु अग्नेत्र, अग्निवेश, चरक, सुश्रुत वाणभट्ट, नागार्जुन जैसे जीव विज्ञान के अनुसन्धायकों ने आयुर्वेद योग, प्राकृतिक चिकित्सा का, पाणीनि कात्यायन पतंजलि ने संस्कृत व्याकरण, वरुरुचि ने अर्थशास्त्र, चाणक्य ने राजनीति, वेदव्यास ने सृष्टि का इतिहास, विश्वामित्र ने आयुध निर्माण, रसायन शास्त्र, वीर हनुमान ने वैमानिकी विद्या, तन्त्र विज्ञान का, चरक ने काय चिकित्सा तथा सुश्रुत ने शल्य विद्या का, वाग्भट्ट ने स्वस्थ जीवनचर्या का, महर्षि मनु ने पारिवारिक सम्बन्ध तथा राजा प्रजा के कर्तव्यों का, महर्षि कणाद ने विज्ञान तथा परमाणु विद्या का, महर्षि गौतम ने न्याय शास्त्र का, अनेकों ऋषियों ने दर्शन शास्त्रों का कालिदास, वाणभट्ट, भवभूति, भारवि आदि ने साहित्य तथा काव्य का अविष्कार किया।
महर्षि वेदव्यास अकेले ने ब्रह्मसूत्र, महाभारत तथा 18 पुराण, 18 उपपुराणों की सांस्कृतिक रचना की जिसमें विश्व का समस्त साहित्य डूब जाए। आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की अवस्था में इतने शास्त्रा तथा टीकाएं तथा हिन्दू धर्म तीर्थों का उद्धार किया जो आश्चर्यजनक है। ऐसे कार्य तो ब्राह्मण ब्रह्मविद्या ज्ञानी, ब्रह्मतेजस्वी ही कर सकते हैं। महर्षि कपिल का सांख्यदर्शन प्रकृति विज्ञान का महामंत्रा है। भगवान् परशुराम ने ब्राह्मणों की अवमानना, राजनैतिक भ्रष्टाचार, गोवध, आश्रमों के विध्वंस के क्या-क्या निवारण किए सर्वविदित है।

एक ब्राह्मण चाणक्य ने एक अवतारी ब्राह्मण परशुराम ने ब्रह्मतेज तथा ब्रह्मबल से संसार में विजयश्री प्राप्त की तथा एकतंत्रा को समाप्त कर लोकतंत्रा की स्थापना की। आज की भ्रष्ट परिस्थिति को नष्ट करने के लिए ब्राह्मण तथा धर्म की अवमानना को समाप्त करने के लिए ब्राह्मणों को वापस ब्रह्मतेज जागृत कर स्वाभिमान रक्षा हेतु परशुराम बनना पड़ेगा। आज भी ब्राह्मणों के पास बुद्धि बल है परन्तु एकता के अभाव में वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा दृष्टि गोचर हो रहा है। ब्राह्मण का जागरण आवश्यक है।